पटना के उलार्क धाम में द्वापर युग में भगवान भास्कर का स्थापना भगवान श्री कृष्ण के वंशज राजा शाम्व के द्वारा स्थापित किया गया था। पुर्वजों का कहना था की भगवान श्री कृष्ण के पौत्र राजा शाम्व में कुष्ठ के बिमारी से ग्रसित होने के कारण सकलर्दीप से वैदो द्वारा कुष्ठ निवारण हेतु भगवान सूर्य के 12 कला को स्थापित करने को कहा गया था और उसका अराधना किया था जिसका एक कला उलार्क धाम में अवस्थित हैं। पुवर्जी का कहना है कि मुगल राज्य में मुगल के राजा औरंगजेव में अपने शासन काल सभी हिन्दु मंदिरों को विध्वंश कर दिया जिसका जिता जागता प्रमाण आज भी यहा देखने को मिलता है स्व० जगनारायण सिंह प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी ने बताया करते थे की औरंगजेव द्वारा मंदिर के विध्वन्स कर देने के बाद मंदिर के गर्भ गृह पर एक विशाल पिपल का वृक्ष था उसी वृक्ष के खोडर मे भगवान अवस्थित थे यहां मंदिर के ग्रभ गृह के आस-पास काफी जंगल थे जंगल होने के कारण वहाँ पर काफि मात्रा में जंगली विषैले जीव रहा करते थे। जिसके कारण वहा ग्राम के बहुत कम लोग पुजा अर्चना करने जाते थे। भगवान के नित्य पूजा करने वाले जो ग्राम लालाभसारा के शाकलदिपी ब्राह्मण पंमवाली मिश्रा ने नित्य प्रति सूर्य कुण्ड तालाब में स्नान कर भगवान को पूजा करते थे। इसी विच सन् 1949 ई वर्ष में स्व० महन्त अलवेला बाबा का आगमन ग्राम अलिपुर में काठिया बाबा के आश्रम में हुआ। ग्राम उलार, आदित्यपुर (अलिपुर) के लोगो ने आपस में उक्त ही जगह भगवान होने का दावा किया। gao ke kuch log बाबा के आश्रम में जाया करते थे जिस कारण बाबा के आगमन का खबर आग की तरह चारो ओर फैल गया। बाबा के आगमन कि सुचना पाकर सुबह दुसरे दिन गाँव के बुढ बूजूर्ग एवं कुछ गणमाण्य व्यक्ति सन्त दर्शण को वहा पधारे, jisme ग्राम वासी स्व० जगनारायण सिंह, स्व० राम सेवक सिंह, स्व० अगति सिंह, स्व० माहासिंह, खदेरण चंन्द्रवंशी, स्व० चुटर राम इत्यादी भक्त पहुँच गये थे । सन्त दर्शन को उपरोक्त व्यवतियों ने स्व० अलवेला बाबा से सूर्य भगवान के मंदिर का प्रस्ताव रखा जिसपर बाबा के अपने मुखारबिन्द से असवासन दिया कि देखने के बाद ही हम कह सकते है कि क्या होगा? बाबा अपने नित्य क्रिया के बाद ग्राम वासियों के साथ भगवान को दर्शन करने हेतू चल पड़े, और भगवान का दर्शन किया| बाबा का कहना था कि भगवान के दर्शन करते ही अपने मुख से बोल दिये की मुझे रहने का व्यवस्था होगा तव तो मंदिर का निर्माण होगा। इतना सुनते ही गाँव वालो ने आनन-भानन में उसी जगह के जंगल के लकड़ी काटकर बाबा का आश्रम के निर्माण मात्र दो घंटे में कर दिया और बाबा का सारा सामान कुटिया में लाकर रख दिया। और बाबा ने अपना आश्रम को विधिवत पूजा अर्चना कर अपना स्थान ग्रहण किया। बाबा को स्थान में रहते हुए एक सप्ताह गुजर जाने के बाद बाबा ने श्री सीता राम नाम जाप का अखण्ड शुरू किये राम नाम जाप के ठीक नैबे दिन पिपल के आधा भाग जा गिरा पर बाबा का राम नाम जाप चलता रहा ठीक एक सप्ताह बाद आप रूपे पिपल का सेस भाग भी गिर गया और गाँव के लोग पिपल का पेड़ हटाना शुरू किया और मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो गया।
अलबेला बाबा का आगमन कैसे हुआ ? यह एक जटिल सवाल है? मुझे लोगो से सुनने को मिलता है की उलार-आदित्यपुर (अलीपुर) के दक्षिण भाग में कठिया बाबा नाम के साधु कुटीया में रहा करते थे। उनके नाम पर यह बगीचा का नाम कठीया बाबा पड़ा। उनके शिष्य थे सुखलु दास । सुखलु दास के साथ उलार ग्राम निवासी खदेरा चंद्रवंशी रहा करते थे। एक दिन अचानक उस बगीचा में एक सन्त का आगमन हुआ। और सुखलु दास के साथ रहने लगे। तभी लोगो ने बाबा से कहा की पास के गाँव में एक घना जंगल है जहाँ पूजा होता है। बाबा ने जंगल को देखा और कहा की हमें रहने का स्थान दो । तभी गाँव के लोग कुल्हारी से जंगल काट कर एक आश्रम बनाया। अलबेला बाबा रहने लगे और वहाँ सीता राम का अनुष्ठान यज्ञ शुरू किया। और कहें कि अगर भगवान होगें तो 20 से 30 दिन के अन्दर पीपल का वृक्ष स्वत गिर जायेगा। वही हुआ पेड़ स्वत अपने आप गिर गया। और भगवान की विखंडित मूर्तिया निकला। यह सब भगवान के कृपा से हुआ। बाद में यही मंदीर भगवान सूर्य देव रूप में विराजमान हुआ। उलार धाम में प्रति रविवार को सैकड़ो लोग पूजा करते हैं। यहाँ एक चूड़ियों का सानदार बाजार भी लगता था। जो आज विलीन हो गया है। आज यहाँ बहुत मात्रा में शादी-विवाह होता है। उलार सूर्य मंदिर के सटे पवित्र तालाब है। मान्यता है कि उसमें स्नान करने से कुष्ट से मुक्ति प्राप्त होता हैं। उलार सूर्य मंदिर से सटे बंशीधारी उच्च विद्यालय विराजमान है। यहाँ पर पहले लड़का लड़की को में एक साथ पढ़ाया जाता था। उलार से सटे पूरब 2 कि० मी० दूरी पर भरतपूरा पुस्तकालय सह संग्राहालय स्थित है। यहाँ पुरे भारतवर्ष के लोग पाण्डुलीपी को देखने आते हैं। उलार से 3 कि० मी० की दूरी पर दुल्हिन बाजार है। लाला भदसारा की एक महारानी थी जिनके नाम पर यह है। स्थान का नाम दुल्हिन बाजार पड़ा पीपल का वृक्ष हमको सुनने को मिलता है की जब देव महोत्सव, गजणा महोत्सव, राजगीर महोत्सव मनाया जा सकता है तो उलार महोत्सव क्यों नही? और सभी लोग वर्ष 2014 में उलार सूर्य मंदिर विकास मंच बनाकर उलार महोत्सव की शुरूआत किये। हमें विश्वास है की एक उलार सूर्य मंदिर को सरकार द्वारा पयर्टन की सुविधा दिया जाएगा।