इतिहास के आईना में उलार धाम
सूर्य मंदिर के अन्दर ग्राउण्ड में मुख्य सूर्यमंदिर द्वार के पास श्री श्री 1008 श्री अलबेला बाबा मंदिर के प्रथम श्री संत ऋषी मठाधीश थे वे अपने हाथो से दो अशोक का वृक्ष लगाये थे और अपने दिव्य शक्ति से भविष्यवानी किये थे जिस दिन अशोक बृक्ष डाल एक दूसरे में सट जाएगा उस (उलार धाम) में सोना, मोति, हीरा, का वर्षा होगा अर्थात बाबा का कहना था कि उचित विकास विकशीत दुनिया देश जान पाएगा जो सच में देखने के मिला और सुनने को मिलता है।
मंदिर परिसर में एक वृक्ष है। उसका नाम (मकरतेन वृक्ष) ऐसा देखने सुनने को मिलता है। दर्द ग्रस्त लोगो को वृक्ष का फल सरसो के तेल में उबालकर मालीश करने से स्वतः समाप्त हो जाता है। उलार गाँव कि ऐतिहासिक कथा है इस गाँव में भगवान भास्कर कि स्वयं उत्पन्न प्रतिमा विराजमान है जिसका जुड़ाव द्वापर युग से है।
विश्व में भगवान भास्कर की 12 अर्द्ध स्थल है उसमे उलार धाम का एक स्थान है। इस गाँव कि प्रत्येक वर्ष दो छठ पूजा होता हैं चैती एवं कार्तिक पर्व धूम-धाम से मनाया जाता है । इस पर्व को ग्रामीण लोग महोत्सव के रूप में मनाते है। यहाँ के हर युवा, बच्चा, महिला बृद्धजन के साथ-साथ आस-पास के क लोगो इस छठ महोत्सव में अपनी क्षमता अनुसार सहयोग करते हैं, अगर आप उस समय देव नगरी में आते है तो एक अलग नजारा देखने को मिलेगा । पूरे इलाका भक्तिमय नजर आता है। चारो तरफ साफ सफाई के साथ-साथ अन्य सुविधा ग्रामीणों के सहयोग से दिखाई देता है।
इस छठ पूजा की महत्व है की किसी को कुष्ट रोग हो जाता है तो भगवान पर चढ़ाया हुआ दुध शरीर पर लगाने से शरीर रोग मुक्त हो जाता है सूर्य पूजा अर्चणा करने के बाद धूप का भभूत कुष्ट रोगी सच्चे मन आत्मा से अपने बदन पर लगाता है तो कुष्ट से मुक्ति प्राप्त हो जाता है।
उलार धाम सूर्य मंदिर का इतिहास
अनजान आदमी दुल्हिनबाजार का नाम सुनते ही एकबार जरूर ठिठक जाता है। हर आदमी के मन में यह कौध जाता है कि यह जरूर दुल्हिन यानी लड़कियों का बाजार है। लेकिन सच इसमें कोसों दूर है। पटना जिले का यह महज एक प्रखंड है। जहां आसपास के लोग अपनी जरूरत की समानों को खरीदने के लिए पहुंचते है।
दूर-दराज के लोग इस बाजार का नाम सुनकर आश्चर्यचकित होते हैं। जाने- अनजाने से उत्सुकतावश लोग यह जानने का प्रयास करते हैं कि मशहुर बाजार कहा है और कैसा है ? इस बाजार के बनने और नामकरण को लेकर भी अपनी अलग कहानी है। बताया जाता है कि करीब 1925 में लालाभदसारा निवासी व जमीनदार राय बिंदेश्वरी सहाय, जगन्नाथ सहाय, देवनाथ सहाय, भगवान सहाय आदि अपने पटीदार थे। इन लोगों की उस समय जमीन्दारी थी। 1955 में सरकार ने इस लोगों से जमीनदारी छीन ली। तब जाकर ये लोग अपने स्थान से गया, आरा व पटना शहर की ओर कूच कर गये और वही बस गये। इसमें एक पटीदार, बिंदेश्वरी सहाय की मृत्यु हो गयी।
जिसमें इनकी पत्नी रामदुलारी कुंअर थी, जो दुल्हिन कहलाती थी। उनका यह प्रसास था कि इस स्थान पर बाजार लगे। उस दिन से सबसे पहले अपनी नाम से एक बड़ा कुंआ का निर्माण कराया। फिर इसके बाद लोगों के ठहराव व विश्राम के लिए एक धर्मशाला का भी निर्माण कराया, जो आज भी है। जमींदार परिवार की दुल्हिन धार्मिक व श्रद्धालु विचार की थी। करीब 1930 में दुल्हिन राम दुलारी कुंअर ने इस जगह पर अपने ही नाम से बाजार लगवाया। इन व्यवसायियों को रामदुलारी कुंअर के द्वारा हर तरह की सुविधा प्रदान होने लगी। इस हर तरह की सुविधा प्रदान होने लगी। इस सुविधा को देखते हुए और अन्य जगह के व्यवसायी यहां आने लगे।
इसी बीच दुल्हिन रामदुलारी कुंअर का निधन हो गया । धीरे-धीरे यह बाजार । दुल्हिन बाजार के नाम से जाना जाने लगा। लोगों के कथनानुसार दुल्हिन रामदुलारी कुंअर का एक भी औलाद नहीं था। 1930 में दुल्हिनबाजार सृजन से पहले यह जगह लोदीकटरा नवाब का था । फिर इनसे लालाभदसारा निवासी जमीन्दार बिंदेश्वरी सहाय ने ले लिया।दुल्हिन के नाम पर बसायी गई बाजार में थाना, प्रखंड, बैंक, अस्पताल, पोस्ट ऑफिस, बस स्टैण्ड सभी प्रकार के व्यवसायों प्रतिष्ठान हैं। इसकी पहचान समस्त भारतवर्ष में भरतपुरा पुस्तकालय सह संग्राहलय एवं पौराणिक उलार सूर्य मंदिर के रूप में होती है।